दहेज़ प्रथा पर कविता Dahej Pratha par Poem in Hindi
मिटेंगे जल्द दहेज के दिन
अपने घर को भरने की खातिर
दुसरे के घर को उजाड़ना
कहाँ बहादुरी है
एक बेटी के पिता की जिन्दगी
पैसे जोड़ते हुए गुजर जाती है
दहेज़ प्रथा
हमें अंदर तक तडपाती है
उठ रही है आवाज़
हटेगी यह दहेज प्रथा
आएगी हमारी खुशियों की बारी
फिर न लगेगी बेटियां
किसी बापू को भारी
अब हवा से जमीन तक
बेटियां उड़ रही हैं
आज़ादी की ओर बढ़ रही है।
अंशु अवनिजा
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