चरित्र का महत्त्व चरित्र से ही मनुष्य का जीवन गौरवपूर्ण बनता है, धन, पदवी, ऊँची शिक्षा आदि से नहीं। समाज में गौरव (महत्त्व) और सम्मान जितना सदाचारी का होता है, उतना धनाढ्य तथा ऊँचे पद वाले का भी नहीं होता। धनवान के यश से सबको ईर्ष्या होती है। इसी प्रकार धन, विद्या या योग्यता वाले में अभिमान होता है; परन्तु शुद्ध चरित्र वाले से न तो कोई ईर्ष्या करता है और न कभी उसका मन अशान्त होता है। चरित्र का महत्व पर निबंधचरित्र निर्माण पर निबंध - चरित्र के कई अंग हैं जैसे-सत्य पर अटूट विश्वास, शान्तचित्तता, छल-कपट का अभाव आदि। जो व्यक्ति अपने सिद्धान्तों पर दृढ़ होता है, उसी का चरित्र शुद्ध होता है। सरल हृदय व्यक्ति में विश्वास, प्रेम, दया, कोमलता तथा सहानुभूति के भाव आप से आप आ जाते हैं।
इनमें से एक भी गुण पूरी तरह आ जाए, तो व्यक्ति भलामानस, सभ्य, कुलीन और शिष्ट कहलाने लगता है। चतुराई और विद्या यदि न भी हो, तो भी चित्त की सरलता और विवेक (कर्तव्य-अकर्तव्य की पहचान) से मनुष्य में शक्ति तथा योग्यता आ जाती है।
आत्मगौरव भी चरित्र का मुख्य अंग है । इस भावना वाला मनुष्य नीच कार्यों से सकुचाता है। आत्मगौरव की रक्षा के लिए हर समय सावधान रहना पड़ता है और एक-एक काम सोचकर करना होता है। वचन का पालन, सिद्धान्त पर दृढ़ता, रिश्वत के सामने न झकना, आत्मगौरव के अभिन्न अंग हैं।
धन नहीं तो कुछ चिन्ता नहीं; परन्तु चरित्रहीन व्यक्ति वास्तव में निर्धन है। अच्छे चरित्र वाला डरता नहीं, निराश नहीं होता। भाग्यवश जिसका धन नष्ट हो गया हो; परन्तु धीरज, मन की प्रसन्नता, धर्म की दृढ़ता, आत्मगौरव तथा सत्य का अटूट विश्वास हो तो व्यक्ति गरीब नहीं है।
पवित्र चरित्र के प्रधान अंग हैं-छल-कपट न होना, लेनदेन में सफाई, वचन-पालन, आश्रितों पर दया-भाव, परिश्रमशीलता, उद्योग तथा परिश्रम पर विश्वास, अभिमान का अभाव। जिसके चरित्र में उक्त सभी गुण हों, वह देवता या जीवन्मुक्त योगी है। Related Articles:
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