Essay on Love in Hindi | सच्चा प्यार क्या होता है ?
प्रेम का अर्थ - दुनिया की सबसे खूबसूरत शाय है प्रेम हालांकि प्रेम के कुछ अन्य रूप भी है धरती के ऊपर आसमान का निहारना तपती जमीन पर मेघ के बूंदों का नर्तन, सूखी शाख पर धानी पत्तियों का पुनर आगमन समुंदर की लहरों का पूनम की चांद को देख कर मचलना जा फिर शीतल हवा के मंद झोकों से आंखों का बंद हो जाना यह सब ही प्रेम के ही भिन्न-भिन्न आयाम है। प्रेम अपने आप हमें इतना विस्तृत है कि इसका कोई ओर हे ना छोर इसकी अनुभूति इतनी गहरी है कि इसका कोई थाह नहीं।
Pyar kya hota hai - प्यार में दुनिया खूबसूरत हो जाती है अल्हड़ भावनाएं परिपक्व हो जाती है। कभी जो भावनाएं सूफी हो जाती है तो कभी इनका रूप आकर्षक लगने लगता है प्रेम में दुनिया जीत लेने के भी किससे है और प्राणउत्सर्ग की कथाएं भी है रानी पद्मावती और रानी रूपमती की प्रेम कहानियां अमर है प्रेम जब जुनून बन जाता है तब सांप भी रस्सी सा दिखाई देता है। वही रस्सी जिसके सहारे कालिदास ने उफनती नदी भी बड़ी सहजता से पार कर ली थी प्रिय की चाहत बड़ी बलवती होती है आंख कान और स्पर्श जैसी इंद्रियां अनुभव बन जाती है।
रूह से रूह का मिलन :
बसंत का संबंध प्रेम से है बसंत प्रकृति और प्रजनन को बनाए रखने वाला मौसम है बसंत जानी नवोन्मेष अंग्रेजी कैलेंडर का फरवरी माह और हिंदी पंचांग का बसंत एक ही ऋतु का पर है इसलिए फरवरी को प्यार का महीना कहा जाता है कभी और कलाकार अपनी संवेदना शीलता के कारण प्रेम को महसूस करते हैं पर बहुत कम लोग जो हर क्षण प्रेम को जीते हैं प्रेम की उद्दात अवस्था यही है जो धीरे धीरे दे कि परिधि तोड़कर रूह तक पहुंच जाती है ज्यादातर लोग इतनी गहराई में उतर ही नहीं पाते प्रेम के इस ताल पर प्रेम अपरिसीमत सुंदर और परिवर्तनशील होता है कबीर प्रेम को दुरारोह और दुष्प्रय मानते हैं उस स्तर पर जहां प्रकृति और निवृत्ति आसक्ति और अनासक्ति लोक परलोक एक साथ नहीं चलते जहां क्षणिक का अंत हो जाता है और संपूर्ण ब्राह्मण अपना लगने लगता है वही प्रेम का सर्वोच्च रूप होता है जानी व्यक्ति का लोप और ईश्वर तत्व का अनुभव कबीर ने अपने ज्ञान का निचोड़ निकालकर कहा था
प्रेम की प्रक्रिया सृष्टि के अंत तक करें समय बनी हुई है काम से होते हुए प्रेम ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करता है और फिर व्यक्तित्व के पूर्ण विलय तक पहुंच जाता है ये अनुभव की गहराई से ही जाना जा सकता है किताब पढ़ कर नहीं यूं ही नहीं कही गई है जोशी
जिसने यह दौलत ली वह ईश्वर हो गया जिसे यह धन मिल गया वह मौला हो गया.
रिश्तो की तासीर के अनुसार होता है बदलाव :
प्रेम का स्वरूप रिश्तो की तासीर के अनुसार बदलता भी रहता है मां बेटी पिता पुत्र भाई बहन और पति पत्नी का प्रेम शाश्वत होता है उसमें सवार तो और छल कपट का लेशमात्र भी संशय नहीं होता हालांकि समय के साथ ही ने रिश्तो में भी परिवर्तन आया है प्यार एक एहसास है उपजता है। इसे किसी पर थोपा नहीं जा सकता एक मां को दूर रहकर भी अपने बेटे की अवस्था का भान हो जाता है। एक पत्नी सपने में भी पति की पदचाप समझ जाती है। दिल के तारों का जुड़ना इसी को कहते हैं प्रेम ही वह पुख्ता जमीन तैयार करता है जिस से टकराकर अहम का शीशा टूट जाता है और दिल जुड़ जाते हैं प्रेम अपने को स्वाहा करने की चाह रखता है।
प्रेम देता है यह संदेश :
देश से प्यार करने वाले देशभक्त का प्रेम उच्च कोटि का होता है सबसे अनूठा प्रेम तो उन देशभक्तों का होता है जो वतन की खातिर फांसी पर लटक जाते हैं भक्तों और भगवान का प्रेम भी वंदनीय है शबरी का निछावर प्रेम राम को उसके झूठे बेर खाने को बाध्य करता है। तो वहीं सुजाता के हाथों खीर खाकर बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति होती है। मीरा और राधा का कृष्ण के प्रति अनुराग किसी से छुपा नहीं राधा और कृष्ण का प्रेम सादारण किशोर किशोरियों की ही प्रतिरूप है जो अपने चरम पर पहुंच कर प्रकृति के साथ एकात्म होता है और ईश्वर यह बन जाता है प्रेम की यह अलख जिसके दिल में जग जाती है वह भी देवतुल्य हो जाता है कहने का सार यह है कि प्रेम के बिना जीवन कुछ भी नहीं दुख सुख को पीड़ा प्रसन्नता आदि संवेदनाओं का उमड़ना प्रेम के कारण ही होता है ढाई आखर का यह शब्द इतना बलशाली है के यह विश्व्बंधुत्त्व अपने अंदर की भावनाओं को जागृत करता है सदियों पहले तपस्वीओं द्वारा पहचाना गया यह यथार्थ आज भी अक्षरश सत्य है।
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प्रेम का अर्थ - दुनिया की सबसे खूबसूरत शाय है प्रेम हालांकि प्रेम के कुछ अन्य रूप भी है धरती के ऊपर आसमान का निहारना तपती जमीन पर मेघ के बूंदों का नर्तन, सूखी शाख पर धानी पत्तियों का पुनर आगमन समुंदर की लहरों का पूनम की चांद को देख कर मचलना जा फिर शीतल हवा के मंद झोकों से आंखों का बंद हो जाना यह सब ही प्रेम के ही भिन्न-भिन्न आयाम है। प्रेम अपने आप हमें इतना विस्तृत है कि इसका कोई ओर हे ना छोर इसकी अनुभूति इतनी गहरी है कि इसका कोई थाह नहीं।

रूह से रूह का मिलन :
बसंत का संबंध प्रेम से है बसंत प्रकृति और प्रजनन को बनाए रखने वाला मौसम है बसंत जानी नवोन्मेष अंग्रेजी कैलेंडर का फरवरी माह और हिंदी पंचांग का बसंत एक ही ऋतु का पर है इसलिए फरवरी को प्यार का महीना कहा जाता है कभी और कलाकार अपनी संवेदना शीलता के कारण प्रेम को महसूस करते हैं पर बहुत कम लोग जो हर क्षण प्रेम को जीते हैं प्रेम की उद्दात अवस्था यही है जो धीरे धीरे दे कि परिधि तोड़कर रूह तक पहुंच जाती है ज्यादातर लोग इतनी गहराई में उतर ही नहीं पाते प्रेम के इस ताल पर प्रेम अपरिसीमत सुंदर और परिवर्तनशील होता है कबीर प्रेम को दुरारोह और दुष्प्रय मानते हैं उस स्तर पर जहां प्रकृति और निवृत्ति आसक्ति और अनासक्ति लोक परलोक एक साथ नहीं चलते जहां क्षणिक का अंत हो जाता है और संपूर्ण ब्राह्मण अपना लगने लगता है वही प्रेम का सर्वोच्च रूप होता है जानी व्यक्ति का लोप और ईश्वर तत्व का अनुभव कबीर ने अपने ज्ञान का निचोड़ निकालकर कहा था
प्रेम गली अति सांकरी तामे
तामे दौड न समाहि
जिसने यह दौलत ली वह ईश्वर हो गया जिसे यह धन मिल गया वह मौला हो गया.
रिश्तो की तासीर के अनुसार होता है बदलाव :
प्रेम का स्वरूप रिश्तो की तासीर के अनुसार बदलता भी रहता है मां बेटी पिता पुत्र भाई बहन और पति पत्नी का प्रेम शाश्वत होता है उसमें सवार तो और छल कपट का लेशमात्र भी संशय नहीं होता हालांकि समय के साथ ही ने रिश्तो में भी परिवर्तन आया है प्यार एक एहसास है उपजता है। इसे किसी पर थोपा नहीं जा सकता एक मां को दूर रहकर भी अपने बेटे की अवस्था का भान हो जाता है। एक पत्नी सपने में भी पति की पदचाप समझ जाती है। दिल के तारों का जुड़ना इसी को कहते हैं प्रेम ही वह पुख्ता जमीन तैयार करता है जिस से टकराकर अहम का शीशा टूट जाता है और दिल जुड़ जाते हैं प्रेम अपने को स्वाहा करने की चाह रखता है।
प्रेम देता है यह संदेश :
देश से प्यार करने वाले देशभक्त का प्रेम उच्च कोटि का होता है सबसे अनूठा प्रेम तो उन देशभक्तों का होता है जो वतन की खातिर फांसी पर लटक जाते हैं भक्तों और भगवान का प्रेम भी वंदनीय है शबरी का निछावर प्रेम राम को उसके झूठे बेर खाने को बाध्य करता है। तो वहीं सुजाता के हाथों खीर खाकर बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति होती है। मीरा और राधा का कृष्ण के प्रति अनुराग किसी से छुपा नहीं राधा और कृष्ण का प्रेम सादारण किशोर किशोरियों की ही प्रतिरूप है जो अपने चरम पर पहुंच कर प्रकृति के साथ एकात्म होता है और ईश्वर यह बन जाता है प्रेम की यह अलख जिसके दिल में जग जाती है वह भी देवतुल्य हो जाता है कहने का सार यह है कि प्रेम के बिना जीवन कुछ भी नहीं दुख सुख को पीड़ा प्रसन्नता आदि संवेदनाओं का उमड़ना प्रेम के कारण ही होता है ढाई आखर का यह शब्द इतना बलशाली है के यह विश्व्बंधुत्त्व अपने अंदर की भावनाओं को जागृत करता है सदियों पहले तपस्वीओं द्वारा पहचाना गया यह यथार्थ आज भी अक्षरश सत्य है।
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