King and Spider story in Hindi - वह आतंक और असमंजस का दौर था। पर्शिया पर आक्रमण हो चुका था और पारसियों का कत्ल-ए-आम चरम पर था। आक्रमण का सामना करने वाले कुछ बहादुर योद्धा किसी तरह दुश्मनों के हाथों से बच कर निकल गए। थक कर चूर और भूख से अधमरे हो चुके ये योद्धा एक जगह से दूसरी जगह मारे-मारे छिपते-फिरते रहे। आखिर वे एक ऊंचे पर्वत के सामने पहंचे। अब इस हाल में इस पर्वत को पार करना उनके लिए नामुमकिन था। वे समझ गए कि यही उनका आखिरी ठिकाना है।
अचानक उनमें से एक की नजर कुछ ऊपर स्थित एक गुफा पर पड़ी लेकिन वहां तक पहुंचना उनके वश की बात नहीं थी। फिर भी उन्होंने अपनी सारी हिम्मत जुटा कर पर्वत पर चढ़ना शुरू किया। वे किसी तरह गुफा तक पहुंच गए और उसके भीतर पहुंचते ही अचेत-से होकर गिर पड़े। कुछ देर बाद उन्होंने अभी अपनी सांसें संभाली ही थीं कि उन्हें दुश्मनों के कदमों की आहट सुनाई देने लगी। वे पहाड़ी चढ़ रहे थे। गुफा में मौजूद सभी लोगों को लगा कि अब उनकी मौत सिफ एक हा काम कर सकत था और वह था-प्रार्थना करना।

वे प्रार्थना करने लगे-शांति, पूरी गहराई तथा श्रद्धा के साथ। तभी एक अनोखी घटना घटी। गुफा के मुंह पर एक मकड़ी प्रकट हुई और उसने तेजी से जाला बुनना शुरू कर दिया। कुछ ही पलों में उसने इतना बड़ा जाला बुन दिया कि गुफा का मुंह ही ढंक गया। तभी दुश्मन के सैनिक वहां आ पहुंचे। उन्होंने गुफा देखी तो उसमें घुसने के लिए आगे बढ़े लेकिन লাৱ उनके सेनापति ने उन्हें रोक दिया क्योंकि उसकी नजर मकड़ी के जाले पर पड़ी।
उसने कहा, "मकड़ी का जाला साबुत है। इसका मतलब यह हुआ कि कोई भी गुफा में नहीं गया है। समय व्यर्थ न गंवाओ। चलो, यहां से।" सैनिक चले गए और उन शरणार्थियों की खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने ईश्वर का शुक्रिया अदा किया, क्योंकि उन्हें पूरा विश्वास था कि उस मकड़ी को ईश्वर ने ही भेजा था। यह कहानी आज पारसियों की लोककथाओं में शामिल है और इसीलिए उनके यहां मकड़ियों को न मारने की परम्परा है।
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अचानक उनमें से एक की नजर कुछ ऊपर स्थित एक गुफा पर पड़ी लेकिन वहां तक पहुंचना उनके वश की बात नहीं थी। फिर भी उन्होंने अपनी सारी हिम्मत जुटा कर पर्वत पर चढ़ना शुरू किया। वे किसी तरह गुफा तक पहुंच गए और उसके भीतर पहुंचते ही अचेत-से होकर गिर पड़े। कुछ देर बाद उन्होंने अभी अपनी सांसें संभाली ही थीं कि उन्हें दुश्मनों के कदमों की आहट सुनाई देने लगी। वे पहाड़ी चढ़ रहे थे। गुफा में मौजूद सभी लोगों को लगा कि अब उनकी मौत सिफ एक हा काम कर सकत था और वह था-प्रार्थना करना।

वे प्रार्थना करने लगे-शांति, पूरी गहराई तथा श्रद्धा के साथ। तभी एक अनोखी घटना घटी। गुफा के मुंह पर एक मकड़ी प्रकट हुई और उसने तेजी से जाला बुनना शुरू कर दिया। कुछ ही पलों में उसने इतना बड़ा जाला बुन दिया कि गुफा का मुंह ही ढंक गया। तभी दुश्मन के सैनिक वहां आ पहुंचे। उन्होंने गुफा देखी तो उसमें घुसने के लिए आगे बढ़े लेकिन লাৱ उनके सेनापति ने उन्हें रोक दिया क्योंकि उसकी नजर मकड़ी के जाले पर पड़ी।
उसने कहा, "मकड़ी का जाला साबुत है। इसका मतलब यह हुआ कि कोई भी गुफा में नहीं गया है। समय व्यर्थ न गंवाओ। चलो, यहां से।" सैनिक चले गए और उन शरणार्थियों की खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने ईश्वर का शुक्रिया अदा किया, क्योंकि उन्हें पूरा विश्वास था कि उस मकड़ी को ईश्वर ने ही भेजा था। यह कहानी आज पारसियों की लोककथाओं में शामिल है और इसीलिए उनके यहां मकड़ियों को न मारने की परम्परा है।
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