
मकर संक्रांति के त्योहार के दिन तिल का बड़ा ही महत्व होता है इस दिन तिल के महत्व के कारण ही इसे तिल संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन तिल के विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार किये जाते हैं। माना गया है के तिल का निर्माण भगवान विष्णु के शरीर से हुआ है। जिस कारण तिल का प्रयोग सभी तरह के पापों से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है और साथ ही साथ यह शरीर को गर्म रखता है और शरीर को निरोगी बनाता है।
मकर संक्रांति के पर्व से संबंधित बहुत सारी पौराणिक कथाएं जुडी हुई हैं। ऐसी मान्यता है के इस दिन सूरज भगवान अपने पुत्र शनि से मिलने खुद उनके घर गए थे। मकर राशि के स्वामी हैं शनिदेव, जिस कारण इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। एक और पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का वध कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने सभी दैत्यों का सिर मन्दार पर्वत के नीचे दबा दिया था। ऐसा भी माना गया है के इसी दिन गंगा जी भागीरथी के कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर से मिली थी।
मान्यता है के गंगा देवी को धरती पर लाने वाले भागीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण भी किया था और माता गंगा देवी जी ने उनको स्वीकार किया था। इसके इलावा शरशैया पर लेटे भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का इंतजार किया था। उनके शर - शैया को लेकर एक कथा सुनने को मिलती है।
एक वार शर - शैया पर पड़े भीष्म ने ऋषियों से पूछा गुरु जी क्या में अपने पिछले एक सौ जन्मों को देख सकता हूं, मुझे ज्ञात नहीं है के मैंने पिछले जन्म में कोई ऐसा पाप किया हो के मुझे शर - शैया पर पड़ने का कष्ट भोगना पड़ रहा है। गुरु जी ने बताया के तुमने अपने 112 जन्म के पूर्व शिकार पर जाते हुए रास्ते में पड़े एक सर्प को अपने तीर से उछालकर झाड़ियों में फेंक दिया था और सर्प के काँटों में गिरने से उसकी मौत हो गयी थी। इसी पाप की वजय से तुम्हे यह शर - शैया प्राप्त हुई है।
भीष्म ने फिर पूछा किस पाप का फल 112 जन्म के पश्चात मुझे अब क्यों मिल रहा है गुरु जी ने उन्हें बताया कि तुम्हारे यह समस्त जन्म शुभ कर्मों से युक्त थे। अत: कहीं भी उस पाप को भोगने का कारण नहीं बन पाया मौका नहीं मिला और तुम्हारे पाप अच्छे कार्यों के प्रभाव से दबे रहे।
किंतु इस जन्म में आपने अपने अहंकार रूपी वचन में हंसकर दोस्त कौरवों का अन्न ग्रहण किया और यह जानते हुए भी द्रोपदी को सभा में नग्न करने वालों का विरोध तक नहीं किया इस वजह से इस पाप के फल को अवसर प्राप्त हुआ भीष्म पितामह ने अपने अपने पाप कर्मों के समय के लिए उत्तरायण का इंतजार किया और फिर अपने प्राणों की आहुति दे दी।
रंग बिरंगी मकर संक्रांति
अन्य त्योहारों की तरह भी मकर संक्रांति का त्यौहार बड़े ही प्रभावशाली तरीके से मनाया जाता है जितनी विविधता इस पर्व के दिनों में देखी जाती है वह किसी अन्य त्यौहार पर देखने को नहीं मिलेगी उत्तर भारत में मकर संक्रांति की पूर्व संध्या को यह लोहड़ी के रूप में बड़े ही जोश और उल्लास के साथ मनाया जाता है फिर मकर संक्रांति के दिन सुबह सुबह स्नान कर सूर्य देवता की पूजा अर्चना की जाती है पूर्वोत्तर राज्यों में बिहू तो दक्षिणी राज्यों में पोंगल के रूप में भी मकर संक्रांति का यह त्यौहार खास तौर पर मनाया जाता है।
रूठे को मनाने की परंपरा
हरियाणा राज्य की सीमा से सटे राज्यों में इस त्योहार के दिन बड़े बुजुर्गों से उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है इस दिन विवाहित औरतें अपने सास और ससुर जेठ जेठानी और रिश्ते में बड़ों को वस्त्र भी दान करती है और जिन परिजनों से गिला शिकवा होता है उन्हें मनाने की कोशिश भी की जाती है।
दान और पुण्य कर्म का दिन
मकर संक्रांति के दिन संगम तटों पर स्नान कर दान करने की परंपरा विकसित हुई संक्रांति के पावन त्योहार पर हजारों लोग इलाहाबाद के त्रिवेणी संगम वाराणसी में गंगा घाट राजस्थान में पुष्कर हरियाणा में कुरुक्षेत्र नासिक में गोदावरी नदी में स्नान करती है गुड और तेल के पकवान सूरज को अर्पित कर सभी लोगों में बांटे जाते हैं। गंगासागर में पवित्र स्नान के लिए इन दिनों श्रद्धालुओं की एक भारी भीड़ उमड़ पड़ती है मकर सक्रांति के दिन गंगा तट पर स्नान और दान करने का विशेष महत्व समझा जाता है इस दिन किए गए कर्मों का फल बड़ा ही शुभ होता है कंबल और वस्तुओं का दान बड़ा ही शुभ और पुण्यदायी समझा जाता है इस दिन चावल दान करने का विशेष महत्व है।
ऐसी मान्यता है कि इन सभी चीजों को दान करने वाले को सभी पापों से मुक्ति मिलती है ऐसा शास्त्रों में वर्णन किया गया है। उत्तर प्रदेश में इस दिन तेल दान करने का विशेष महत्व है महाराष्ट्र में नवविवाहिता औरतें प्रथम संक्रांति पर नमक कपास और तेल आदि वस्तुएं सौभाग्यवती औरतों को भेंट करती है बंगाल में भी मकर संक्रांति के दिन तेल दान करने का विशेष महत्व है राजस्थान में सौभाग्यवती औरत इस दिन तिल के लड्डू बनाकर और मोतीचूर के लड्डू आदि पर रुपए रख कर अपनी सास को भेंट में देती है।
मकर सक्रांति पर खान-पान
मकर संक्रांति त्योहार पर जिस प्रकार देश भर में बड़े ही जोश और उल्लास भरे ढंग से मनाया जाता है उसी तरह खाने पीने के मामले में भी यह बहुत प्रसिद्ध है एक खास तथ्य यह है कि मकर संक्रांति के नाम तरीके और खान - पीन में अंतर के बावजूद भी सभी में एक समानता मिलती है के इनमें व्यंजन तो अलग-अलग होते हैं पर उन में प्रयोग होने वाली सामग्री एक ही होती है यह महत्वपूर्ण त्यौहार माघ मास में आता है भारत में माघ महीने में बहुत ज्यादा ठंडा पड़ती है शरीर को अंदर से गर्म बनाए रखने के लिए गुड, चावल की दाल का सेवन किया जाता है।
Essay on Makar Sankranti in Hindi 400 Words
यूं तो हिन्दुस्तान अनंत पर्वों का देश है लेकिन मकर संक्रांति सिर्फ पर्व नहीं, यह सूर्य उपासना का महापर्व है। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसीलिए पूरे देश में इस दिन को बहुत पवित्र माना जाता है। देश के हर कोने में अलग -अलग नामों व् तरीकों से इसकी महत्ता को नमन किया गया है। इस दिन से सूर्य उतरायण होना शुरू हो जाता है।नतीजतन धरती के उत्तरी गोलार्ध से शीत ऋतू धीरे -धीरे विदा होने लगती है। इस दिन के बाद से दिन भी क्रमश : बड़े होने लगते हैं। चूंकि हमारे यहां किसी भी अवसर को मान देने का एक तरीका उस दिन के साथ जुडी उल्लासपूर्ण गतिविधियां हैं इसीलिए मकर संक्रांति के दिन भी देश के अलग -अलग हिस्सों में अलग -अलग किस्म की परंपराएं होती हैं।
मकर संक्रांति से पहले उत्तर भारत में ख़ास तौर पर दिल्ली , पंजाब , हरियाणा , हिमाचल प्रदेश , महाराष्ट्र केरल आदि आदि में बड़े ही धूम -धाम से लोहड़ी मनाई जाती है इसमें शाम को घर के सामने आग जलाई जाती है आग के इर्द -गिर्द घर -परिवार , आस -पड़ोस के लोग इकट्ठा होते हैं नाचते हैं मूंगफली और रेबड़ी आदि खाते हैं भारत के तमिलनाडु , आंध्र प्रदेश इस दिन पोंगल मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश , बिहार में तो खिचड़ी तो गुजरात और महारष्ट्र में इस दिन उत्तरायणी पर्व मनाया है। परंम्परिक जीवन में इस दिन दान पुण्य का बहुत महत्व है।
धर्मग्रंथों के अनुसार इस दिन 'तिल दान' को सबसे उत्तम दान समझा जाता है। इस दिन उत्तर प्रदेश के बुदेंलखंड इलाके में दुरिया मनाने की प्रथा भी है, इसमें 13 सुहागनों को मिठाई जा चना गुड़ खिलाया जाता है और फिर उन्हें सुहाग चिन्ह भी भेंट किया जाता है। महाराष्ट्र के कई इलाकों में विशेषकर मराठवाड़ा में सुहागन महिलाएं स्नान कर तुलसी की पूजा की जाती है।
इस दिन महिलाएं मिट्टी से बना छोटा घड़ा जिसे सुहाणा चावाणा कहा जाता है में तिल के लड्डू , अनाज , खिचड़ी और दक्षिणा रखकर दान का संकल्प लेती हैं। मकर संक्रांति का पर्व यूं तो पूरे देश में मनाया जाता है लेकिन इसे पूरे देश में क्षेत्रीय तौर तरिके से ही मनाया जाता है। इसीलिए इस दिन हर क्षेत्र में उस इलाके के ही व्यंजन बनते हैं। मसलन तमिलनाडु में इस दिन जहां जल्लिकट्टु की धूम होती है वहीँ गुजरात में मकर संक्रांति के दिन पतंगबाजी की खुमारी देखते ही बनती है। जहां और दिल्ली व् जयपुर में भी इस दिन पतंगे उड़ाई जाती है।
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