Makar Sankranti poem in Hindi | मकर संक्रांति पर कविता
धूधाम से मनाते मकर संक्रांति
पोंगल कहो, कहो या कहो
मकर संक्रांति
धूधाम से मनाते हैं
मिलकर सारे भारतवासी
वर्ष का यह पहला त्योहार
है बड़ा ही ख़ास
आसमान में उड़ रही पतंगे
लगती हैं उमग की तरंगे
किसी की लाल किसी की हरी
किसी की गुलाबी पतंग
कोई रह जाता है पीछे तो
किसी ने मारी है बाजी
उत्तरायण हुआ दिवाकर
मकर रेखा को पीछे छोड़कर
संदेश देता आगे बढ़ने का
असफलताओं को पीछे छोड़ कर
कुमारी सलोनी
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है बड़ा ही ख़ास
आसमान में उड़ रही पतंगे
लगती हैं उमग की तरंगे
किसी की लाल किसी की हरी
किसी की गुलाबी पतंग
कोई रह जाता है पीछे तो
किसी ने मारी है बाजी
उत्तरायण हुआ दिवाकर
मकर रेखा को पीछे छोड़कर
संदेश देता आगे बढ़ने का
असफलताओं को पीछे छोड़ कर
कुमारी सलोनी
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