Poem on Childhood in Hindi | बचपन पर कविता

गिल्ली डंडे से फिसल कर
पब्जी में उतर गया कभी कहा जाता था
किताबों में मिलना है ज्ञान
आज गूगल बाबा पर निर्भर है इन्सान
कभी किताबें पढ़ -पढ़ सो जाता था
आज इन्टरनेट पर पढ़ते पढ़ते
सूरज निकल आता है
कभी चिट्ठियों का रहता था महीनों इंतज़ार
आज एक मैसेज की बात पर
दोस्त कहता है यार busy हूं
कभी घर के आंगन में बैठकर
सुनी जाती थी कहानी
आज दुनिया है youtube की दीवानी
कभी दीवार में लगे झरोखे से
बैठकर हो जाती थी भरोसे की बातें
आज whatsapp ने है सारे रिश्ते बांधे
बेशक यह जमाना भारी है
उस जमाने पर
मगर आज भी दिल धड़कता है
बचपन की यारी पर
कल्पना - पुरवा , उन्नाव यूपी
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