Short Essay on Satsangati in Hindi
सत्संगति अच्छों की संगति से बुद्धि की जड़ता दूर होती है, वाणी तथा आचरण में सत्य की वृद्धि होती है, सम्मान बढ़ता है, पापों का नाश होता है, चित्त को प्रसन्नता प्राप्त होती है, सामान्य पुरुष की भी कीर्ति दिग्दिगन्त तक फैल जाती है। सत्संगति से मनुष्य को कौन-सा लाभ नहीं होता?
प्रारम्भ में मनुष्य अपने रक्त-सम्बन्धियों के सम्पर्क में आता है; जैसे-माता, पिता, भाई, बहन, चाचा, मामा, बुआ, दादा, दादी इत्यादि। इसके अतिरिक्त उसे विद्यार्थीकाल में अपने सहपाठियों के सम्पर्क में आना पड़ता है। घर के प्रभाव तथा संस्कार उसपर पड़ने अनिवार्य हैं। इसी प्रकार स्कूल के वातावरण में भी उस पर गहरा असर पड़ता है।
घर तथा स्कूल के अतिरिक्त गली-मुहल्ले में हमजोलियों के साथ गपशप करने में तथा खेल-कूद में और घूमने-फिरने आदि में भी समय बिताना पड़ता है। वास्तविक निकट संग यही होता है। बस, इसी संग के ऊपर उसके व्यक्तित्व के बनने अथवा बिगड़ने का अधिक दारोमदार होता है।
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